कैपिटल बजट का सही इस्तेमाल नहीं कर पा रहा चंडीगढ़ प्रशासन; रेवेन्यू बजट के तहत सैलरी पर ज्यादा खर्च, जरा डाटा देखिए
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Chandigarh Budget: चंडीगढ़ प्रशासन बीते कई सालों से कैपिटल बजट का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। बीते चार साल की ही बात करें तो यह बजट लगातार लैप्स होता जा रहा है। इसकी वजह से शहर में इनफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं किया जा पा रहा है। दूसरी तरफ अगर रेवेन्यू बजट के तहत सैलरी की बात करें तो इसे कुछ सालों में तो बजट से भी ज्यादा खर्च कर दिया गया है। यानि ये तरीका प्रशासन के बजट के अनुरूप रेवेन्यू और खर्चे को लेकर सवाल खड़े कर रहा है।
यूटी प्रशासन ने बीते चार साल में कभी भी अपने कैपिटल बजट का पूरा उपयोग नहीं किया। प्रशासन के आंकड़े इस तथ्य को बता रहे हैं। वर्ष 2021-22 में प्रशासन का कैपिटल एक्सपेंडिचर बजट 618.45 करोड़ था। प्रशासन इसका महज 59.07 प्रतिशत ही खर्च कर पाया। प्रशासन ने इसमें से केवल 365.31 करोड़ रुपये खर्च किये। इसी तरह वर्ष 2022-23 में यूटी प्रशासन का केवल 539.33 करोड़ रुपये का कैपिटल बजट था जिसमें से केवल 240.02 करोड़ रुपये जो महज 44.50 प्रतिशत बैठता है, ही खर्च कर पाया। नवंबर 2022 तक 539.33 करोड़ के कैपिटल बजट में से 151.49 करोड़ रुपये खर्च किये गये जो 28.09 प्रतिशत बैठते हैं। इसी तरह सितंबर 2023 तक 722.03 के कुल कैपिटल बजट में से 180.85 करोड़ रुपये खर्च किये गए। यह कुल कैपिटल बजट के खर्चे का केवल 25.05 प्रतिशत है। नवंबर 2023 तक यह आंकड़ा 221.61 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यानि 30.69 प्रतिशत ही कैपिटल बजट का खर्च हो सका।
वर्ष 2023 में सैलरी पर 120 फीसदी से ज्यादा की राशि खर्च
दूसरी तरफ सैलरी पर चंडीगढ़ प्रशासन लगभग पूरी-पूरी राशि खर्च कर रहा है। वर्ष 2020-21 में सैलरी पर यूटी प्रशासन ने 99.06 प्रतिशत की राशि खर्च कर दी। 2021-22 में 98.97 प्रतिशत की राशि सैलरी पर खर्च की गई। इसी तरह वर्ष 2023 में 120.29 प्रतिशत राशि सैलरी पर खर्च की गई। यानि सैलरी पर तय बजट से करीब 20 प्रतिशत ज्यादा राशि खर्च की गई। नवंबर 2023 में सैलरी पर 77.56 प्रतिशत खर्चा किया गया हालांकि यह नवंबर 2022 में 89.62 प्रतिशत था।
ये रहे रेवेन्यू के आंकड़े
जहां तक रेवेन्यू की बात है तो वर्ष 2021 में यह 3729.55 करोड़ रुपये था। 2022 में यह 4496.4 करोड़ पर जा पहुंचा। वर्ष 2023 में यह 5932.47 रहा। नवंबर 2022 तक यह 4015.56 करोड़ था जो नवंबर 2023 में 4066.12 करोड़ तक जा पहुंचा।
कमाऊ पूत भी नहीं कमा पा रहा
एक्साइज विभाग जो किसी भी सरकार या प्रशासन के लिये कमाऊ पूत होता है, वह चंडीगढ़ प्रशासन के लिये कपूत बन गया। इस बार आबकारी विभाग ने बीते साल की तुलना में काफी कम राशि कमाई। नवंबर 2022 तक बीते साल प्रशासन की पॉकेट में इस मद से 651.46 करोड़ रुपये की राशि गई थी। नवंबर 2023 में यह घटकर महज 548.82 करोड़ रह गई। यानि ठेके न बिकने की वजह से 102.64 करोड़ रुपये एक्साइज विभाग कम कमा पाया। इसकी वजह पंजाब की तुलना में इस बार की कमजोर एक्साइज पॉलिसी बताई जा रही है। कमजोर पॉलिसी की वजह से ठेके नहीं बिक पाये। चंडीगढ़ प्रशासन ने जीएसटी मद से वर्ष 2023 का टारगेट 2400 करोड़ तय किया था। नवंबर 2023 तक प्रशासन की झोली में केवल 1350.10 करोड़ रुपये एकत्र हुए हैं।
अब नहीं रहा चंडीगढ़ का सरप्लस बजट
कोई जमाना था जब चंडीगढ़ का बजट सरप्लस हुआ करता था लेकिन बीते कुछ सालों से यह सरप्लस नहीं रहा। वर्ष 2021 में 495.81 करोड़ रुपये सामान्य घाटे का बजट था। ओवरऑल 836.58 करोड़ रुपये का घाटा रहा। 2022 में ओवरऑल 316.3 करोड़ का घाटे का बजट रहा हालांकि सामान्य घाटा 48.66 करोड़ था। 2023 में 22.27 करोड़ रुपये का ओवरऑल सरप्लस बजट था। 265.66 करोड़ का सामान्य सरप्लस रहा। नवंबर 2022 में सामान्य तौर पर 368.94 करोड़ का घाटा जबकि ओवरऑल 520.16 करोड़ रुपये का घाटे का बजट रहा। इसी तरह नवंबर 2023 तक 436.79 करोड़ रुपये का घाटा जबकि ओवरऑल घाटा 657.91 करोड़ रहा।
चार माह के खर्चे के लिये बचे महज 21 प्रतिशत
बीते दिनों एक पत्रकार वार्ता के दौरान पंजाब के राज्यपाल और यूटी, चंडीगढ़ के प्रशासक बनवारी लाल पुरोहित ने बताया था कि प्रशासन अपने बजट का 79 फीसदी खर्च कर चुका है। यानि चार माह के लिये प्रशासन के पास खर्चे के लिये 21 प्रतिशत बजट ही बचा है। हर बार प्रशासन रिवाइज्ड बजट केंद्र सरकार के पास भेजता है और कुछ अतिरिक्त राशि मिल भी जाती है लेकिन इस मर्तबा रिवाइज्ड बजट की बात ही नहीं है। इस बार चूंकि लोकसभा के चुनाव नजदीक हैं लिहाजा केंद्र सरकार भी अंतरिम बजट ही पेश करेगी। असल बजट जुलाई में प्रस्तुत किया जाएगा। अब सवाल ये है कि खर्च कहां से चलेगा। प्रशासन का कमाई से ज्यादा खर्चा चल रहा है।
चंडीगढ़ के आर्थिक हालात सही नहीं
सैकेंड इनिंग एसोसिएशन के प्रधान आरके गर्ग ने कहा है कि चंडीगढ़ के आर्थिक हालात सही नहीं हैं। प्रशासन को इस पर गंभीरता से सोचना होगा। सैलरी की मद पर ज्यादा खर्चा हो रहा है, जिन महकमों से कमाई होनी चाहिए वहां कमाई घट गई है। यह चिंताजनक हालात हैं। हर साल कैपिटल बजट लैप्स होने को लेकर सवाल किये हैं। उनका कहना है कि अगर बजट ही नहीं खर्चा जा रहा तो इनफ्रास्ट्रक्चर कैसे बनेगा।
रिपोर्ट- साजन शर्मा